शुरुआती कारोबार में रुपया 15 पैसे टूटकर 80.93 प्रति डॉलर पर पहुंचा, शेयर बाजार में भी उतार-चढ़ाव
घरेलू शेयर बाजारों की कमजोर शुरुआत से भी रुपए की धारणा प्रभावित हुई। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया मजबूती के साथ 80.53 पर खुला। वैश्विक बाजारों के सकारात्मक रुख के बीच विदेशी निवेशकों के प्रवाह से सोमवार को शुरुआती कारोबार में शेयर बाजार मजबूत रुख के साथ खुला। लेकिन बाद में इसमें उतार-चढ़ाव देखने को मिला। बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 92.98 अंक चढ़कर 61,888.02 अंक पर पहुंच गया।
मुंबई। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में सोमवार को शुरुआती कारोबार में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। घरेलू शेयर बाजारों की कमजोर शुरुआत से भी रुपए की धारणा प्रभावित हुई।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया मजबूती के साथ 80.53 पर खुला। लेकिन बाद में इसने शुरुआती लाभ गंवा दिया और यह 15 पैसे के नुकसान के साथ 80.93 प्रति डॉलर पर कारोबार कर रहा था। शुक्रवार को रुपया 62 पैसे की बढ़त के साथ 80.78 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। इस बीच, अन्य छह मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी मुद्रा को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.49 प्रतिशत की बढ़त के साथ 106.80 पर पहुंच गया।
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव
वैश्विक बाजारों के सकारात्मक रुख के बीच विदेशी निवेशकों के प्रवाह से सोमवार को शुरुआती कारोबार में शेयर बाजार मजबूत रुख के साथ खुला। लेकिन बाद में इसमें उतार-चढ़ाव देखने को मिला। बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 92.98 अंक चढ़कर 61,888.02 अंक पर पहुंच गया। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 44.4 अंक की बढ़त के साथ 18,394.शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा 10 अंक पर पहुंच गया। हालांकि, उसके बाद उतार-चढ़ाव कायम हो या। सेंसेक्स बाद में 35.7 अंक के नुकसान से 61,759.34 अंक पर आ गया।
वहीं निफ्टी 12.30 अंक के मामूली लाभ के साथ 18,362 अंक पर कारोबार कर रहा था। सेंसेक्स की कंपनियों में पावर ग्रिड, टाटा स्टील, कोटक महिंद्रा बैंक, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, महिंद्रा एंड महिंद्रा और अल्ट्राटेक सीमेंट लाभ में थे। वहीं डॉ. रेड्डीज, आईसीआईसीआई बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और आईटीसी के शेयर नुकसान में थे। शुक्रवार को सेंसेक्स 1,181.34 अंक या 1.95 प्रतिशत की बढ़त के साथ 61,795.04 अंक पर बंद हुअ था। शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा वहीं निफ्टी 321.50 अंक या 1.78 प्रतिशत के लाभ से 18,349.70 अंक पर रहा था।
विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी
भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.
बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.
सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.
इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का ‘भुगतान संतुलन’ खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.
यह सब तेजी से बदलने को है और भारत शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.
विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.
बढ़ते व्यापार शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.
कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.
रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.
विदेशी शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.
इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.
लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.
बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.
भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.
अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.
इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.
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करना चाहते हैं विदेशी शेयर बाजारों में निवेश तो जान लीजिए ये Tax Rules, बड़े काम की है ये जानकारी
भारतीयों का विदेशी शेयर बाजारों (Foreign Equity Investmet) में निवेश करने का रूझान बढ़ता जा रहा है. विदेशी बाजारों में भी अमेरिकी बाजार भारतीयों की पहली पसंद है.
Tax Rules: विदेशी शेयर बाजारों (Foreign Equity Investment) में निवेश करने का रूझान बढ़ता जा रहा है. अमेरिकी बाजार भारती . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : February 22, 2022, 10:39 IST
नई दिल्ली. अपने निवेश पोर्टफोलियो (Investment Portfolio) में विविधता लाने का एक तरीका विदेशी बाजारों में निवेश (Investing In Foreign Markets) करना है. विदेशी बाजारों में निवेश से निवेशकों को अस्थिरता से निपटने में मदद मिलती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि जरूरी नहीं कि जब घरेलू बाजार में गिरावट हो तो विदेशी बाजार भी गिर रहे होंगे. इसका एक अन्य फायदा यह है कि इसमें मुद्रा में उतार-चढ़ाव के जोखिम से राहत मिलती है. निवेशक को निवेश पर रिटर्न डॉलर में मिलता है. रुपये में गिरावट होने पर विदेशी मुद्रा में निवेश का मूल्य बढ़ जाता है. इसका आपको दोहरा फायदा होता है.
भारतीय कई देशों के शेयर बाजारों में निवेश कर सकते हैं. परंतु ज्यादातर भारतीयों के लिए न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज (New York Stock Exchange) और नेस्डेक (NASDAQ) में ही निवेश करना पसंद करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सबसे बड़े स्टॉक मार्केट हैं. किसी घरेलू या विदेशी ब्रोकरेज के माध्यम से एक ब्रोकरेज अकाउंट (Brokerage Account) खोलकर कोई भी भारतीय एप्पल (Apple), टेस्ला (Tesla), स्टारबक्स और मेटा (Meta) जैसी कंपनियों के शेयरों में निवेश कर सकता है. कोई भी भारतीय निवेशक विदेशी शेयर बाजार में स्वयं 2.5 लाख डॉलर प्रति वर्ष निवेश कर सकता है. म्यूंचुअल फंड (Mutual Fund) के माध्यम से निवेश की कोई सीमा नहीं है.
कैसे करें निवेश (How To Invest in Foreign Markets)
कोई भी निवेशक घरेलू शेयर बाजारों की तरह विदेशी शेयर बाजारों में भी निवेश कर सकता है. विदेशी बाजारों में भी निवेश 2 तरीके से किया जा सकता है. निवेशक म्यूचुअल फंड के जरिए इनमें निवेश कर सकता है. कोई व्यक्ति सीधे ही विदेशी शेयर बाजारों से खरीदारी कर सकता है. म्यूचुअल फंड में कई प्रकार के फंड हैं, जो विदेश में निवेश का प्रस्ताव देते हैं. भारत में कई अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड हैं. इन म्यूचुअल फंडों की खास बात यह है कि इनमें भारतीय करेंसी में ही निवेश कर सकते हैं और आपको फॉरेक्स एक्सचेंज के झंझट में भी नहीं पड़ना होता है और न ही फॉरेक्स एक्सचेंज चार्जेज देने होते हैं. म्यूचुअल फंड के जरिए एक निवेशक कितना भी निवेश कर सकता है.
कितना लगता है टैक्स (Tax on Foreign Equity Investment )
विदेशी बाजारों में निवेश करने से पहले टैक्स नियमों को जान लेना जरूरी है. यह शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा समझना जरूरी है कि वहां की कमाई पर कितना और कैसे टैक्स लगेगा. यूएस सिक्योरिटीज और एक्सचेंज कमीशन (US Securities and Exchange Commission -SEC) के साथ पंजीकृत निवेश सलाहाकार वेस्टेड फाइनेंस (Vested Finance) का कहना है कि अगर 24 महीनों से ज्यादा स्टॉक को अपने पास रखकर बेचा जाता है तो उस पर 20 फीसदी की दर से लॉंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा और कुछ सरचार्ज और फीस भी देनी होगी.
ईटीएफ के लिए यह सीमा 36 महीने हैं. अगर 24 महीने से पहले ही बिकवाली कर दी जाती है तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स आपके इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से वसूला जाएगा. यही नहीं, अमेरिका में डिविडेंड्स पर 25 फीसदी की दर से टैक्स लगता है. इनवेस्टर को ब्रोकरेज काटकर ही बाकी 75 फीसदी रकम देता है. हालांकि, भारत में टैक्स फाइल करते समय चुकाए गए डिविडेंड टैक्स का क्रेडिट ले सकते हैं.
स्पेशल टैक्स नहीं
ऑनलाइन पोर्टल टैक्सबडी डॉट कॉम (Taxbuddy.com) के फाउंडर सुजीत बांगड़ का कहना है कि अमेरिका या किसी अन्य देश में इक्विटी में निवेश के लिए कोई निर्धारित टैक्स रेट आदि नहीं हैं. विदेशी होल्डिंग्स भी सोने की तरह ही एक एसेट है जिस पर नियमानुसार टैक्स लगता है. हम यहां विदेशी एसेट अपने पास रखते हैं तो यह जरूरी है कि वो ऐसे फंड से खरीदे गए हों, जिसकी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में हमने दी हो.
विरासत में मिले हों शेयर तो क्या?
अगर किसी को विदेशी शेयर विरासत (Inherits Foreign Shares) में मिले हों तो फिर क्या होता है? इस सवाल के जवाब में बांगड़ का कहना है कि अगर कोई भारतीय विदेशी एसेट्स में निवेश ग्लोबल फंड्स आदि के माध्यम से निवेश करता है तो इस तरह के निवेश पर विरासत कर या एस्टेट ड्यूटी नहीं देनी होती है. अगर कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत हैसियत से अमेरिका में शेयर खरीदता है तो उसकी मौत के बाद विरासत टैक्स (Inherits Tax) देना पड़ता है. लेकिन, शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा ऐसे मामलों में भी अमेरिका में चुकाए टैक्स पर वह भारत में क्रेडिट ले सकता है क्यों भारत और अमेरिका इस को लेकर समझौता है.
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Forex Reserve: देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 631 अरब डॉलर पर आया, गोल्ड रिजर्व में दिखी गिरावट
Forex Data: देश का विदेशी मुद्रा भंडार इस बार बढ़ा है लेकिन गोल्ड रिजर्व या सोने के भंडार में गिरावट देखी गई है. आईएमएफ के पास जमा देश का एसडीआर भी 5.9 करोड़ डॉलर घटकर 18.981 अरब डॉलर रह गया है.
By: ABP Live | Updated at : 12 Mar 2022 08:59 AM (IST)
Edited By: Meenakshi
विदेशी मुद्रा भंडार
Foreign Exchange Reserves: देश का विदेशी मुद्रा भंडार चार मार्च को खत्म हफ्ते में 39.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 631.92 अरब डॉलर हो गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ये जानकारी दी है और इससे पूर्व 25 फरवरी को खत्म हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 1.425 अरब डॉलर घटकर 631.527 अरब डॉलर रह गया था.
सितंबर में विदेशी मुद्रा भंडार था ऑलटाइम हाई पर
इससे पहले तीन सितंबर, 2021 को खत्म हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के सर्वकालिक स्तर पर जा पहुंचा था. आरबीआई के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) के बढ़ने की वजह से हुई जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. आंकड़ों के अनुसार 18 फरवरी को खत्म हफ्ते में एफसीए 63.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 565.466 अरब डॉलर हो गया.
गोल्ड रिजर्व या सोने के भंडार में आई गिरावट
डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्रा के मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है. इसी आलोच्य हफ्ते में स्वर्ण भंडार यानी देश का गोल्ड रिजर्व 14.7 करोड़ डॉलर घटकर 42.32 अरब डॉलर रह गया.
IMF के पास जमा SDR में भी दिखी गिरावट
समीक्षाधीन हफ्ते में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 5.9 करोड़ डॉलर घटकर 18.981 अरब डॉलर रह गया. आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार 3.4 करोड़ डॉलर घटकर 5.153 अरब डॉलर रह गया.
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देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा
देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है और इस हफ्ते शेयर बाजार में आई गिरावट का असर हालांकि इसपर देखा जा रहा है लेकिन फिर भी बढ़त संतोषजनक है. विदेशी निवेशकों का निवेश भारत में बढ़ रहा है और इसका असर फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व पर देखा जा रहा है.
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Published at : 12 Mar 2022 08:59 AM (IST) Tags: Gold forex foreign currency gold reserve foreign exchange reserves हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, लेकिन बढ़ा देश का स्वर्ण भंडार
राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में हमेशा उतार-चढ़ाव देखने को मिलता रहता है, लेकिन पिछले साल के अंत तक लगातार इसमें गिरावट ही दर्ज की जा रही है। हालांकि, स्वर्ण भंडार में बीच-बीच में बढ़त देखने को मिली है। उसके बाद साल के दूसरे महीने में विदेशी मुद्रा भंडार में कुछ बढ़त दर्ज होने के बाद इस बार फिर इसमें गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, स्वर्ण भंडार बढ़ा है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा शनिवार को जारी किए गए ताजा आंकड़ों से हुआ है।
RBI के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा शनिवार को जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 11 फरवरी 2022 को समाप्त सप्ताह में 1.763 अरब डॉलर घटकर 630.19 अरब डॉलर पर आ गिरा है। जबकि, इससे पहले 4 फरवरी को भी खत्म हुए हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त देखने को मिली थी। 4 फरवरी 2022 को समाप्त सप्ताह में 2.198 अरब डॉलर बढ़कर 631.953 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। हालांकि, उससे पहले भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 21 जनवरी 2022 को समाप्त सप्ताह में 67.8 करोड़ डॉलर घटकर 634.287 अरब डॉलर था। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी बढ़त दर्ज होती है।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय से गिरावट दर्ज की गई थी, वहीं, अब समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 95.20 करोड़ डॉलर बढ़कर 40.235 अरब डॉलर पर जा पहुंची हैं। हालांकि, इससे पहले भी गोल्ड रिजर्व में गिरावट ही दर्ज की गई थी। रिजर्व बैंक ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती है।
आंकड़ों के अनुसार FCA :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़कर होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। FCA को डॉलर में दर्शाया जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्ति भी शामिल होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, सप्ताह के दौरान FCA में 2.764 अरब डॉलर घटकर 565.565 अरब डॉलर हो गया।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा शेयर बाजार या विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है। इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
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