"तो दिल्ली में दिल्‍ली वक्फ बोर्ड की मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों को दिए जा रहे 18,000 रुपये और 16,000 रुपये का मासिक मानदेय दिल्ली सरकार द्वारा करदाताओं भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? के पैसे से दिया जा रहा है, जो अपीलकर्ता की ओर से दिए गए उदाहरण के विपरीत है, जिसमें एक हिंदू मंदिर के पुजारी को उक्त मंदिर को नियंत्रित करने वाले ट्रस्ट से प्रति माह 2,000 रुपये की मामूली राशि मिल रही है।"

केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान में आप का स्वागत है

केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान भारत सरकार द्वारा कृषि मंत्रालय के अधीन 3 फरवरी, 1947 को स्थापित किया गया है और बाद में वर्ष 1967 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ कार्यरत है. इन 65 वर्षों के कार्यकाल के दौरान विश्व में उष्णतकटिबंधीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान का उद्गम हुआ.

सी एम एफ आर आइ की स्थापना के प्रारंभ से लेकर इसके आकार और कद में उल्लेखनीय विकास हुआ, पर्याप्त अनुसंधान अवसंरचनाओं का विकास और भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? योग्य कार्मिकों की भर्ती की गयी. लगभग पांच दशकों के पहले हिस्से के दौरान सी एम एफ आर आइ ने समुद्री मात्स्यिकी अवतरण के आकलन, समुद्री जीवों के वर्गिकीविज्ञान एवं पखमछली तथा कवच मछली के विदोहन किए गए प्रभव की जैव-आर्थिक विशेषताओं के अनुसंधान में अपना योगदान किया.भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति?

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएँ | आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएँ

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएँ

(1) निर्यात में वृद्धि

योजनाकाल में देश के निर्यातों में निरन्तर वृद्धि की प्रवृत्ति हो रही हैं। 1950-51 में हमारा निर्यात 608 करोड़ रूपये था जो बढ़कर 1970-71 में 1535 करोड़ रूपये 1997-98 में 126286 करोड़ और 2000-2001 में 203571 करोड़ रूपये हो गया।

भारत एक विविधतापूर्ण देश है। यहाँ अनेक समूहों के अपने विचार, परंपराएं, भाषा, खानपान, वेशभूषा, मान्यताएं आदि हैं। इस वातावरण में किसी एक समूह के विचारों को दूसरे पर थोपने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है।

18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति मानवता को परिवर्तित करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने न केवल हर समाज की आर्थिक व्यवस्था को भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? पूरी तरह से बदल दिया, बल्कि साथ ही साथ उनके शासित होने के तरीके में भी अनेक बदलाव किए।

तब से, समुदाय-केंद्रित परंपराओं और आर्थिक व्यवस्थाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

चूँकि भारत जैसे विविधता वाले देश में भी आर्थिक आधुनिकीकरण भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? की खोज की जानी थी, इसलिए शासन का लक्ष्य हमेशा ही अपनी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि को आगे बढ़ाने के तरीके को खोजने की ओर रहा।

भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति?

भारत में कृषि साख Bhugol aur Aap | February - March 2021 भारत में किसानों का मुद्दा व कृषि कर्ज माफी संवेदनशील रही है। वैसे समय-समय पर भारत सरकार किसानों के लिए अल्पकालिक से लेकर दीर्घकालिक संस्थागत कर्ज तक पहुंचाने के लिए प्रयास करती रही है। चूंकि अनौपचारिक ऋण प्रणाली की भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? तुलना में संस्थागत ऋण अधिक किफायती है, इसलिए इसका सीधा असर किसानों की उत्पादन लागत पर पड़ता है।

भारत में कृषि ऋण की मौजूदा स्थिति पर चर्च करें तो स्पष्ट होता है कि भारत में किसानों की पहुंच संस्थागत कर्ज तक होने लगी है। हालांकि इसकी कुछ स्याह तस्वीर भी है। 'द हिंदू' में प्रकाशित एक डेटा के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में, कृषि ऋण में 500% की वृद्धि तो जरूर हुई है, लेकिन 12.56 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों में से 20% के पास भी यह नहीं पहुंच पायी है। कृषि-ऋण में वृद्धि के बावजूद, आज भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? भी, देश में बेचे जाने वाले 95% ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरण गैर-वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी द्वारा 18% की उच्च ब्याज दर वित्त पोषण किया जा रहा है। वहीं बैंकों की दीर्घावधि ऋण की ब्याज दर 11% है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी चिंता जाहिर की है कि कृषि परिवारों में सबसे कम भूमि जोत (दो हेक्टेयर तक) वाले संस्थागत स्रोतों (बैंक, सहकारी समिति) से सब्सिडी वाले बकाया ऋण का लगभग 15% ही प्राप्त करते हैं। वहीं 79% हिस्सेदारी सबसे अधिक आकार की भूमि वाले परिवारों (दो हेक्टेयर से ऊपर) की है जो 4% से 7% ब्याज दर पर सब्सिडी वाले संस्थागत ऋण के लाभार्थी हैं। कृषि जनगणना, 2015-16 के अनुसार देश में छोटे और सीमांत किसानों के परिवारों की कुल संख्या 12.56 करोड़ थी। ये छोटी और सीमांत होल्डिंग कुल होल्डिंग का 86.1% बनाते हैं।

इमामों को वेतन पर सुप्रीम कोर्ट के 1993 के आदेश ने भारत के संविधान का उल्लंघन किया, एक गलत मिसाल कायम की: सीआईसी

इमामों को वेतन पर सुप्रीम कोर्ट के 1993 के आदेश ने भारत के संविधान का उल्लंघन किया, एक गलत मिसाल कायम की: सीआईसी

उल्लेखनीय है कि आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर दिल्ली सरकार और दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा इमामों को दिए जाने वाले वेतन का विवरण मांगा था, जिसकी सुनवाई करते हुए सूचना आयुक्त उदय महुरकर ने शुक्रवार (25 नवंबर) को उक्त टिप्पणी की।

दिल्ली वक्फ बोर्ड ने आरटीआई कार्यकर्ता को कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं दी थी।

आदेश में आयोग ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है, जो कहते हैं कि करदाताओं के पैसे का भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति? उपयोग किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं किया जाएगा।

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