1. कच्चे तेल के दामों में वृद्धि
डॉलर के मुकाबले कैसे तय होता है रुपये का रेट, यहां जानें पूरा गणित
Rupee Exchange Rate रुपये की मजबूती और कमजोरी की क्या वजह है। साथ ही सवाल उठता है कि भारतीय रुपया की मजबूती और कमजोरी कौन तय करता है। साथ ही इसे तय करने का फॉर्मूला क्या है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..
नई दिल्ली, टेक डेस्क। भारतीय रुपया सोमवार को अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया था। जब डॉलर के मुकाबले रुपये डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? की कीमत 78 रुपये हो गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय रुपया की मजबूती और कमजोरी कौन तय करता है। साथ ही इसे तय करने का फॉर्मूला क्या है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..
क्या होता है एक्सचेंज रेट
जिस मूल्य (दर) पर एक देश की मुद्रा दूसरे देश की मुद्रा से बदली जाती है उसे ‘एक्सचेंज रेट’ कहते हैं। किसी भी देश की करेंसी का मूल्य बाजार में उसकी मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। जैसे एक सामान्य व्यापारी सामान की खरीद-फरोख्त करता है, वैसे ही फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय होता है। एक्सचेंज रेट दो प्रकार के हो सकते हैं- स्पॉट रेट यानी आज के दिन विदेशी मुद्रा का मूल्य और फॉरवर्ड रेट यानी भविष्य में किसी तारीख के लिए एक्सचेंज रेट।
रुपए की कमजोरी में छिपा है इसकी तंदुरुस्ती का राज
भुवन भास्कर
भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 80.11 का अपना सबसे निचला स्तर छूने के बाद फिलहाल लगभग 50 पैसे मजबूत होकर एक दायरे में स्थिर होता दिख रहा है। लेकिन यह मान लेना कि रुपये डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? के लिए सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है, थोड़ी जल्दबाजी होगी। वैसे तो एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के मुकाबले मजबूत या कमजोर होना विशुद्ध तौर पर आर्थिक घटना है, लेकिन राजनीतिक शोशेबाजी और जुमलों के दौर में अक्सर रुपये की कमजोरी को राष्ट्रीय स्वाभिमान पर प्रहार के रूप में भी उछाल दिया जाता है और इसलिए कई बार रुपये का कमजोर होना सत्तारूढ़ दल के लिए आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक चिंता का सबब बन जाता है।
रुपया यदि डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा है, तो उसके क्या मायने हैं या फिर कमजोर हो रहा है, उसका क्या मतलब है? चीन दशकों से अपनी मुद्रा युआन को कृत्रिम रूप से कमजोर रख कर अमेरिका के खिलाफ भुगतान संतुलन को अपने पक्ष में रखने में कामयाब रहा है। इसको समझने की आवश्यकता है। जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो इसका मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पाद ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी भाव पर उपलब्ध होते हैं।
संबंधित खबरें
FPIs Investment in December: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भरोसा कायम, इस महीने अब तक जमकर की खरीदारी
अगले हफ्ते ये अहम फैक्टर भारतीय शेयर बाजार की दिशा करेंगे तय, इन पर रहेंगी ट्रेडर्स और इनवेस्टर्स की नजरें
Technical View: पिछले हफ्ते निफ्टी और बैंक निफ्टी में दिखी गिरावट, जानें सोमवार को दोनों इंडेक्स की कैसी रहेगी चाल
इसके उलट यदि कोई मुद्रा डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही है, तो उसका आयात सस्ता होगा और निर्यात महंगा होगा। जाहिर है कि भुगतान संतुलन के मामले में इसके कारण मजबूत मुद्रा वाला देश हमेशा नुकसान में रहेगा।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि किसी वस्तु का मूल्य भारत में 80 रुपये है तो अमेरिकी बाजार में वह 1 डॉलर का होगा, लेकिन यदि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होकर 40 रुपये का हो जाए, तो वही वस्तु अमेरिकी बाजार में 2 डॉलर की हो जाएगी। यह आंकड़ा सिर्फ प्रतीकात्मक और समझाने के लिए है क्योंकि देसी मूल्य में एक्सपोर्ट होने पर ट्रांसपोर्ट, टैक्स इत्यादि कई लागत जुड़ती जाएंगी। लेकिन अनुपात तो इसी तरह रहेगा।
अब तक के सबसे निचले स्तर पर रुपया, डॉलर पहुंचा 81 के पार
नई दिल्ली, 23 सितंबर: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंताजनक खबर सामने आई है, जहां रुपया डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। शुक्रवार सुबह कारोबार शुरू होते ही रुपया 25 पैसे टूट गया, जिसके बाद वो अब तक के निचले स्तर 81.09 पर पहुंच गया। इससे पहले गुरुवार को भी भारतीय रुपये का कमजोर प्रदर्शन रहा, जहां कारोबार की शुरुआत में वो 41 पैसे टूटकर 80.38 पर पहुंचा। इस खबर के सामने आते ही विपक्षी दलों को सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया है।
दरअसल अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने रेपो दर में 75 आधार अंकों की वृद्धि की थी, जिसके बाद से ब्याज दरें बढ़ गई हैं। ये उम्मीदों के अनुरूप लगातार तीसरी वृद्धि है, जिसका मतलब है कि निवेशक मौद्रिक के बीच बेहतर और स्थिर रिटर्न के लिए अमेरिकी बाजारों की ओर बढ़ेंगे। फेड ने ये भी संकेत दिया कि अभी ब्याज दरों में डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? बढ़ोतरी जारी रहेगी और ये दरें 2024 ऊंचाई पर ही रहेंगी। इसके अलावा यूएस सेंट्रल बैंक लंबे समय में 2 प्रतिशत की दर से अधिकतम रोजगार और मुद्रास्फीति प्राप्त करना चाहता है। ऐसे में उसका मानना है कि ब्याज दरें बढ़ने से मुद्रास्फीति दर में गिरावट लाने में मदद मिलेगी। अमेरिका के इस फैसले का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे और नुकसान
1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है. इस लेख में हम यह बताने जा रहे हैं कि रुपये की इस गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.
भारत में इस समय सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत के गिरते रुपये के मूल्य की डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? हो रही है. अक्टूबर 12, 2018 को जब बाजार खुला तो भारत में एक डॉलर का मूल्य 73.64 रुपये हो गया था. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है.
Rupee vs Dollar: ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, क्यों आ रही है गिरावट और क्या होगा इसका असर?
- भारतीय रुपये के कमजोर होने से महंगाई बढ़ सकती है।
- डॉलर की मजबूती से आयात महंगा हो जाएगा।
- इस साल की शुरुआत से ही रुपया डगमगा रहा है।
नई दिल्ली। आज भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले (Rupee vs Dollar) 80 से भी नीचे गिर गया। शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ अब तक के सबसे डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? निचले स्तर 80.05 पर आ गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत पिछले आठ सालों में 16.08 रुपये यानी 25.39 फीसदी फिसल चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? के अनुसार, साल 2014 में विनिमय दर 63.33 रुपये प्रति डॉलर थी।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 114