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Foreign Exchange Reserves: बीते सप्ताह देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 563.499 अरब डॉलर पर पहुंचा

Foreign Exchange Reserves: वैश्विक घटनाक्रमों के बीच केंद्रीय बैंक (RBI) विदेशी करेंसी के मुकाबले रुपये के एक्सचेंज रेट में लगातार आ रही गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का उपयोग कर रहा है. यह मुद्रा भंडार में गिरावट की एक बड़ी वजह है.

Foreign Exchange Reserves: बीते सप्ताह देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 563.499 अरब डॉलर पर पहुंचा

Foreign Exchange Reserves: बीते सप्ताह गोल्ड रिजर्व के मूल्य में 15 करोड़ डॉलर की कमी आई है

India's Foreign Exchange Reserves: देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) 16 दिसंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 57.1 करोड़ डॉलर घटकर 563.499 अरब डॉलर हो गया है. भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने शुक्रवार को यह जानकारी दी है. वहीं, पिछले सप्ताह देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में 2.91 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी. 9 दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 564.06 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. इस दौरान मुद्रा भंडार में लगातार पांचवें सप्ताह तेजी दर्ज हुई थी.

अक्टूबर 2021 में मुद्रा भंडार सर्वकालिक उच्चस्तर पर

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आपको बता दें कि अक्टूबर 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था. वैश्विक घटनाक्रमों के बीच केंद्रीय बैंक विदेशी करेंसी के मुकाबले रुपये के एक्सचेंज रेट में लगातार आ रही गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का उपयोग कर रही है. यह मुद्रा भंडार में गिरावट की एक बड़ी वजह है.

RBI ने सितंबर तक 33.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर बेचे

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) से लोकसभा में यह सवाल किया गया कि क्या आरबीआई (RBI) भारतीय करेंसी (Indian Currency) में गिरावट को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग कर रहा है. सीतारमण ने इस सवाल के जवाब में कहा कि भारतीय रुपये (Indian Rupee) के मूल्य में आ रही कमी को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सितंबर 2022 तक 33.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर की शुद्ध बिक्री की है.

बीते सप्ताह फॉरेन करेंसी एसेट में भी आई कमी

केंद्रीय बैंक यानी आरबीआई (RBI) द्वारा जारी किए गए साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, बीते सप्ताह में फॉरेन करेंसी एसेट (Foreign Currency Asset) में भी कमी आई है. यह देश के कुल मुद्रा भंडार का एक अहम हिस्सा है. 16 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में फॉरेन करेंसी एसेट (FCA) घटकर 499.624 अरब डॉलर हो गई है. विदेशी मुद्रा आस्तियां या फॉरेन करेंसी असेट (FCA) कुल विदेशी मुद्रा भंडार में एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. डॉलर में अभिव्यक्त किए जाने वाले फॉरेन करेंसी एसेट में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्राओं में आई कमी या बढ़ोतरी के प्रभावों को भी शामिल किया जाता है.

देश का गोल्ड रिजर्व घटकर 40.579 अरब डॉलर हुआ

इसके अलावा 16 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में देश के स्वर्ण भंडार यानी गोल्ड रिजर्व (Gold Reserves) में भी गिरावट आई है. बीते सप्ताह गोल्ड रिजर्व के मूल्य में 15 करोड़ डॉलर की कमी आई है और यह घटकर 40.579 अरब डॉलर हो गया है. जबकि 9 दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान सोने के भंडार के मूल्य में 15 करोड़ डॉलर की कमी आई थी. इस दौरान स्वर्ण भंडार का मूल्य घटकर 40.729 अरब डॉलर पर जा पहुंचा था.

वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा

रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?

यदि चीन भी कोविड से ठप हो गया तो भारत कब तक बच पाएगा?

इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।

इसका कोई औचित्य नहीं कि प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक शिक्षकों की कमी का सामना करते रहें।

विश्व विदेशी मुद्रा समाचार कैसे व्यापार करें की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।

बढ़ते टकराव के इस दौर में विश्व का बहुपक्षीय ढांचा दरक रहा है और भूराजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं।

इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।

जी-20 के लिए ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ वाला भारत का विचार और प्रासंगिक हो गया है।

विदेश मंत्रालय के विदेशी मुद्रा समाचार कैसे व्यापार करें सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।

इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।

पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

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