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आरवीएनएल के स्टॉक में ट्रेडिंग करेक्शन का समय है : शोमेश कुमार की सलाह
बाजार विश्लेषक शोमेश कुमार : आरवीएनएल के स्टॉक में अभी ट्रेडिंग करेक्शन लग रहा है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। अभी इसे 62 रुपये के स्तर पर जाकर रुकना चाहिये। इसके नीचे अगर ये खिसका तो लंबा चला ट्रेडिंग का समय जायेगा और फिर दिक्कत हो सकती है। 75-76 रुपये के स्तर से पहले इसका ऊपर ट्रेंड बहाल नहीं होगा। यह स्टॉक कंसॉलिडेट करेगा। बाकी इसमें कुछ खास परेशान होने जैसा नहीं है।
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क्या शेयरों के ट्रेड-टू-ट्रेड सेगमेंट के बारे में जानते हैं आप?
ट्रेड-टू-ट्रेड (T2T) एक ऐसा सेगमेंट है जहां शेयर केवल अनिवार्य डिलीवरी के आधार पर ट्रेड किए जा सकते हैं. इसका मतलब यह है कि ट्रेड-टू-ट्रेड शेयर की ट्रेडिंग का समय इंट्राडे ट्रेडिंग नहीं हो सकती है. इस सेगमेंट के हर एक खरीदे/बेचे गए शेयर की पूरा पेमेंट देकर डिलीवरी लेनी पड़ती है. इस सेगमेंट में उपलब्ध शेयरों का निपटान ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर किया जाता है.
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के चंदन तपाड़िया कहते हैं, "T2T सेगमेंट में इंट्राडे ट्रेडिंग की अनुमति नहीं है. शेयरों की डिलीवरी लेना और उनका पूरा भुगतान जरूरी होता है."
2. T2T सेगमेंट में शेयर के जाने का पैमाना क्या है?
सेबी के साथ विचार-विमर्श के बाद स्टॉक एक्सचेंज किसी शेयर को T2T सेगमेंट में डालने या उससे निकालने का फैसला करते हैं. स्टॉक एक्सचेंज और सेबी की वेबसाइटों पर इसके पैमाने लिस्ट हैं. इसकी समय-समय पर समीक्षा होती है. समीक्षा के दिन प्रतिभूति को कम से कम 22 कारोबारी दिनों के लिए 5 फीसदी के प्राइस फिल्टर बैंड में होना चाहिए. इस मापदंड को न पूरा करने पर शेयर 'T'सेगमेंट में नहीं जा सकता है.
स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग करते समय इन कुछ बातों का ज़रूर रखें ध्यान
स्टॉक मार्केट में निवेश से मिलनेवाले ऊंचे रिटर्न्स की वजह से लोग हमेशा से ही स्टॉक मार्केट की ओर आकर्षित होते हैं, लेकिन इक्विटीज़ में पैस बनाना कभी-भी आसान नहीं होता. इसके लिए रिसर्च के साथ-साथ मार्केट की समझ होना भी ज़रूरी है, जिसके लिए बहुत धीरज और अनुशासन की ज़रूरत होती है.
नीचे हम कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में ट्रेडिंग करने से पहले आपको ज़रूर ध्यान देना चाहिए:
1. ट्रेडिंग कॉस्ट
ट्रेडिंग कॉस्ट में ब्रोकरेज, टैक्स और मार्जिन फ़ंड कॉस्ट तीनों ही शामिल होते हैं. इन तीनों में से ब्रोकरेज का हिस्सा बड़ा होता है. यदि ब्रोकरेज की राशि में बचत की जा सके तो ट्रेडिंग कॉस्ट कम हो जाती है और लाभ बढ़ जाता है.
मंथली अनलिमिटेड ट्रेडिंग प्लान्स में ग्राहकों की ब्रोकरेज पर सबसे ज़्यादा बचत होती है. इस प्लान में ग्राहकों को एक सेग्मेंट के लिए अनलिमिटेड संख्या में ट्रेड्स के ट्रेडिंग का समय लिए एक निश्चित मासिक शुल्क देना होता है.
एक इन्ट्राडे ट्रेडर एक दिन में औसतन 20 ट्रेड्स करता है और 15 रु प्रति ट्रेड ब्रोकरेज के हिसाब से एक महीने में ट्रेडिंग का समय ट्रेडिंग का समय 6000 रुपए के ब्रोकरेज का भुगतान करता है. वहीं अनलिमिटेड ट्रेडिंग प्लान्स लगभग 899 रुपए प्रति माह पर ही मिल जाते हैं, जिससे आपकी बड़ी बचत होती है.
शेयर बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ने से किसे फायदा होगा?
एक बार फिर देश के शेयर बाजारों में ट्रेडिंग का समय बढ़ने को लेकर चर्चा होने लगी है. कैपिटल मार्केट रेगुलेटर सेबी और स्टॉक एक्सचेंज इस बारे में विचार कर रहे हैं. ऐसी खबरें हैं कि शेयर बाजार में ट्रेडिंग का वक्त कम से कम डेढ़ घंटे और ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है.
इस बारे में कोई भी फैसला सेबी को करना है, लेकिन स्टॉक एक्सचेंज चाहते हैं कि बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ाकर शाम 5 बजे या 7.30 बजे तक कर दिया जाए. वैसे तो अक्टूबर 2009 में सेबी ने एक्सचेंजों को सुबह 9 बजे ट्रेडिंग का समय से शाम 5 बजे तक शेयर मार्केट खोले जाने की मंजूरी दी थी. इसके बाद ट्रेडिंग का ओपनिंग टाइम तो सुबह 9 बजे कर दिया गया लेकिन ब्रोकरों के विरोध के कारण क्लोजिंग टाइम शाम 3.30 से आगे नहीं बढ़ाया गया.
एक्सचेंज क्यों बढ़ाना चाहते हैं ट्रेडिंग का समय
एक्सचेंजों का कहना है कि ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से ग्लोबल शेयर बाजारों के साथ भारतीय बाजारों का तालमेल बेहतर होगा. एक्सचेंजों की ट्रेडिंग का समय दलील है कि इससे ना सिर्फ विदेशी निवेशकों को भारत में ट्रेडिंग के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा, बल्कि कमोडिटी एक्सचेंजों के साथ भी बेहतर तालमेल हो सकेगा.
इसका फायदा ज्यादा सौदों और वॉल्यूम के रूप में दिखेगा. हालांकि एक्सचेंजों की इन दलीलों से सभी भारतीय ब्रोकर सहमत नहीं हैं. माना जा रहा है कि ट्रेडिंग का समय बढ़ाना बड़े ट्रेडर्स और ब्रोकरेज हाउस के लिए तो फायदेमंद रहेगा, लेकिन छोटे ब्रोकरेज हाउस को इससे नुकसान होगा. इसलिए छोटे ब्रोकरेज हाउस लगातार ट्रेडिंग का समय ट्रेडिंग का समय बढ़ाए जाने का विरोध करते रहे हैं.
छोटे ब्रोकर क्यों कर रहे हैं विरोध
छोटे ब्रोकरेज हाउसेज का कहना है कि कड़े मुकाबले और लगातार बढ़ रहे ऑटोमेशन की वजह से ब्रोकिंग का धंधा पहले से ही काफी दबाव में है. ऐसे में अगर ट्रेडिंग का समय बढ़ाया जाता है, तो इससे छोटे और मध्यम आकार के ब्रोकरों के लिए लागत बढ़ेगी और उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा. उन्हें न सिर्फ दो शिफ्टों में काम करना होगा, बल्कि स्टाफ की संख्या भी बढ़ानी पड़ेगी.
छोटे ब्रोकरों के मुताबिक बड़े ब्रोकरेज हाउस तो दूसरे काम-धंधों से कमाई कर लेते हैं, और उनके पूरे बिजनेस का सिर्फ 5-10% हिस्सा ही ब्रोकिंग से आता है. इसलिए उन्हें ट्रेडिंग का समय बढ़ाए जाने से दिक्कत नहीं है.
छोटे ब्रोकरों का ये भी कहना है कि स्टॉक एक्सचेंज सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं. ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से विदेशी बाजारों से तालमेल बढ़ने की दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में शेयर बाजार के खुलने का समय अलग-अलग है.
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