खुदरा व्यापारियों ने शुरू किया व्यापार स्वराज्य अभियान (File Photo)

नए सामाजिक अनुबंध की जरूरत

पचहत्तर साल पहले भारत को भूख और भुखमरी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस काल-खंड में विदेशी मुद्रा पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। हमारे सामने तब एक आजाद मुल्क बने रहने और अति-गरीबी से.

नए सामाजिक अनुबंध की जरूरत

पचहत्तर साल पहले भारत को भूख और भुखमरी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस काल-खंड में विदेशी मुद्रा पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। हमारे सामने तब एक आजाद मुल्क बने रहने और अति-गरीबी से मुक्ति के लिए अपने आर्थिक विकास को गति देने की भी चुनौती थी। बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, घरेलू व निर्यात संबंधी प्रतिस्पद्र्धी बुनियादी ढांचे और कृषि व विनिर्माण क्षमताओं के आधुनिकीकरण को लेकर भी हम प्रयासरत थे। इसी तरह, सामंती व्यवस्था से ऊपर उठते हुए हमें एक ऐसे युग में प्रवेश करना था, जहां समानता और सामाजिक गतिशीलता को अधिक प्रोत्साहन मिले। इस लिहाज से देखें, तो इन सभी अहम कसौटियों पर हमने अच्छी-खासी तरक्की की है।
मगर क्या हमने अवसर भी गंवाए, गलतियां भी कीं? वास्तव में, हर सफलता कमियों और गंवाए गए अवसरों के साथ ही रेखांकित की जाती है। जैसे, यह समझ से परे है कि कैसे हमने अत्यधिक नियंत्रण वाले केंद्रीकृत योजनाबद्ध मॉडल को लगातार बनाए रखा। यह भी एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज बहुत साफ नहीं कि साल 1991 के आर्थिक सुधार उस समय की मजबूरी थे या हमारी चयन संबंधी आजादी का प्रतिफल? विकल्प तभी सार्थक होते हैं, यदि चुनने के रास्ते कई हों। साल 1991 में हमारे पास चयन के विकल्प सीमित थे।

इस परिस्थिति में यदि हम यहां से अगले 25 वर्षों के लिए अपनी यात्रा शुरू करते हैं, तो 100वें साल पर भारत के लिए हमारी खोज क्या होगी? उन लक्ष्यों की झलक स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन में हमें मिलती है, जिनमें सामाजिक सुधार और पुनर्रचना भी शामिल हैं। उनके ‘पांच प्रण’ के हर प्रण में दूरगामी बदलाव नजर आते हैं और इनमें सबसे अहम है भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प। लिहाजा, हमें खुद से यह पूछना चाहिए कि एक विकसित देश हम कैसे बनेंगे, और इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें किस तरह के बदलावों की जरूरत है?
व्यापक अर्थों में इसका मतलब है, सामाजिक अनुबंध की पुनर्रचना। सन् 1762 में जीन-जैक्स रूसो द्वारा गढे़ गए मूल सामाजिक अनुबंध में शासन संरचना और उसके प्रति दायित्व को लेकर नागरिकों में सहमति थी। बेशक समय की कसौटी पर यह अनुबंध काफी हद तक खरा उतरा है, लेकिन अगले 25 वर्षों के बदलाव की प्रकृति और उसकी रफ्तार पुराने अनुभवों के मुकाबले अलग हो सकती है। जाहिर है, नए सामाजिक अनुबंध से तात्पर्य यह है कि न केवल नागरिक अधिकारों को लेकर, बल्कि उसके कर्तव्यों को लेकर भी नए प्रावधान तय करने की जरूरत है। सवाल है कि एक उच्च आय वाले विकसित देश में हम कैसे शुमार होंगे?
एक, हमें आर्थिक विकास की उन दरों को पाना होगा, जो हमारी प्रति व्यक्ति आय को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की परिभाषा के मुताबिक तय 20 हजार डॉलर नॉमिनल जीडीपी या विश्व बैंक के मापदंड के अनुरूप 12,696 डॉलर के करीब ले आए। अभी हम एक मध्य-आय वाले देश हैं। सिंगापुर सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी शणमुगरत्नम ने प्रथम अरुण जेटली व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए कहा कि लोगों की औसत आय बढ़ाने और अधिक रोजगार पैदा करने के लिए भारत को अगले 25 वर्षों तक आठ से दस फीसदी की दर से विकास करना होगा। यह अनुमान लगाया गया है कि इसके लिए आईएमएफ स्तर के हिसाब से 9.36 प्रतिशत और विश्व बैंक के स्तर के लिहाज से 7.39 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर को हासिल करना अनिवार्य होगा।

साफ है, व्यापार विकास की मुख्य धुरी होगा। हमें एक ऐसी व्यापार नीति तंत्र की जरूरत है, जो वास्तविक विनिमय दरों से आगे जाता हो, बल्कि अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पद्र्धी बनाने के लिए व्यापार, रसद, परिवहन और नियामक ढांचे में उल्लेखनीय सुधार कर सके। आयात शुल्कों की संकीर्ण व्याख्या आत्मनिर्भर भारत के दर्शन से उलट है। जब तक प्रतिस्पद्र्धी कीमतों पर आयात उपलब्ध न होंगे, निर्यात क्षमता प्रतिस्पद्र्धी नहीं बन सकेगी। इसके अलावा, चीन के उदय सहित बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं व बदलावों को देखते हुए हमारी व्यापार रणनीति को एक अलग पटकथा की जरूरत है।
दो, मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर ध्यान देने की जरूरत है। हमें जीवन प्रत्याशा के साथ-साथ ग्रामीण आबादी तक बिजली की पहुंच, इंटरनेट की उपलब्धता, जीवन व संपत्ति की सुरक्षा और आय की असमानता को पाटने जैसे अहम मापदंडों पर सुधार करने की आवश्यकता है। हमें अपने एचडीआई स्कोर को 0.645 के मौजूदा मध्यम स्तर से 0.8 के करीब ले जाने की जरूरत है, ताकि हम उच्च स्तर पर पहुंच सकें। इसके लिए हमें मान्यता प्राप्त निर्यात निकायों की सिफारिशों के अलावा, शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल पर नए सिरे से जोर देने के लिए 2020 की नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में की गई प्रतिबद्धताओं के पालन की आवश्यकता है।

तीन, जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई व जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने का अर्थ है मौलिक तरीकों से जीवन का संचालन। इसका मतलब है, कृषि पद्धतियों, उर्वरकों व कीटनाशकों के इस्तेमाल और यातायात के तरीके में बडे़ पैमाने पर बदलाव। जाहिर है, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, सौर पैनल, बैटरी भंडारण और परिवहन से जुड़े नियमों-नियामकों में व्यापक परिवर्तन करना होगा। इनमें निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने से जोखिम कम होगा, बहुपक्षीय संस्थानों से संसाधन जुटाए जा सकेंगे और लघु व मध्यम उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। हमें अब भी सामाजिक क्षेत्र और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश करना होगा। मगर अनुकूलन और शमन के इस संयुक्त प्रयास के लिए तमाम हितधारकों की सहभागिता व सक्रिय योगदान की जरूरत होगी। इसमें केंद्र, राज्य एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज सरकारों के अलावा सामाजिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
एक विकसित देश बनना हमारा नया सामाजिक अनुबंध है, ताकि गुलामी की औपनिवेशिक विरासत के संकेतकों को मिटाकर उनकी जगह हम गौरव और अपेक्षाओं से युक्त कर्तव्यबोध को स्थापित कर सकें।अल्बर्ट आइंस्टीन ने बिल्कुल दुरुस्त कहा है, ‘अतीत से सीखो, वर्तमान में जियो और भविष्य से उम्मीदें पालो।’ भविष्य के आकलन का सबसे बेहतर तरीका है इसे गढ़ना!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

लुढ़कते रुपये से निपटने की चुनौती

हाल में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में इजाफा करने और मौद्रिक नीति को आगे भी सख्त बनाये जाने के संकेत से 28 सितंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढ़क कर 81.93 पर पहुंच गया. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रुपये में यह सबसे बड़ी गिरावट है. डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐतिहासिक गिरावट के बाद कई भारतीय कंपनियां बचाव के लिए फॉरवर्ड कवर की कवायद में हैं, क्योंकि उन्हें चिंता है कि फेडरल रिजर्व के ताजा संकेत से इसी वर्ष ब्याज दर में और इजाफा हो सकता है, जिससे डॉलर और ज्यादा मजबूत होगा.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन-ताइवान तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच रुपये की कीमत में बड़ी फिसलन के कारण जहां भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं विकास योजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं. विदेशी मुद्रा भंडार 16 सितंबर को दो साल के निचले स्तर पर घट कर 545.65 अरब डॉलर रह गया. इतना ही नहीं, महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं बढ़ती हुई दिख रही हैं.

उर्वरक एवं कच्चे तेल के आयात बिल में बढ़ोतरी होगी और अधिकतर आयातित सामान महंगे हो जायेंगे. यद्यपि रुपये की कमजोरी से आइटी, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे विभिन्न उत्पादों के निर्यात एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन अधिकतर देशों में मंदी की लहर के कारण निर्यात की चुनौती भी दिख रही है. रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है.

वर्ष 2022 के शुरू से ही संस्थागत विदेशी निवेशक बार-बार भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हुए दिखे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि फेडरल रिजर्व द्वारा अमेरिका में ब्याज दरें तेजी से बढ़ायी जा रही हैं. कई विकसित देशों में भी ब्याज दरें बढ़ रही हैं. ऐसे में निवेशक अमेरिका व अन्य विकसित देशों में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मानते हुए भारत की जगह उन देशों में निवेश को प्राथमिकता भी दे रहे हैं. गौरतलब है कि अभी भी डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा है.

दुनिया का करीब 85 फीसदी व्यापार डॉलर की मदद से होता है और 39 फीसदी कर्ज डॉलर में दिये जाते हैं. इसके अलावा, कुल डॉलर का करीब 65 फीसदी उपयोग अमेरिका के बाहर होता है. चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी करीब 80-85 फीसदी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, इसलिए रूस-यूक्रेन युद्ध से कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी की वजह से भारत द्वारा अधिक डॉलर खर्च करना पड़ रहा है.

कोयला, उर्वरक, वनस्पति तेल, दवाई के कच्चे माल, रसायन आदि का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसे में डॉलर की जरूरत और बढ़ गयी है. भारत जितना निर्यात करता है, उससे अधिक आयात करता है. इससे देश का व्यापार संतुलन लगातार प्रतिकूल होता जा रहा है. कमजोर होते रुपये की स्थिति से निश्चित ही सरकार और रिजर्व बैंक चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं. रिजर्व बैंक के प्रयासों से रुपये की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है.

आरबीआइ ने कहा है कि अब वह रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा. उसका कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग इस गिरावट को थामने में किया जायेगा. रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की ओर बढ़ाने और रुपये में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने तथा कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है. ऐसे उपायों से विदेशी निवेश पर कुछ अनुकूल असर पड़ा है.

इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के लिए रणनीतिक उपाय जरूरी हैं. अब रुपये में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को भुनाना होगा. रिजर्व बैंक द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में करने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है. इससे डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों के साथ व्यापार के लिए डॉलर के बजाय रुपये में भुगतान को बढ़ावा देने की नयी संभावनाएं दिख रही हैं.

सात सितंबर को वित्त मंत्रालय और सभी हितधारकों की बैठक में निर्धारित किया गया कि बैंकों द्वारा दो व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं की विनिमय दर बाजार आधार पर निर्धारित की जायेगी. निर्यातकों को रुपये में व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन और नये नियमों को जमीनी स्तर पर लागू करने की रणनीति तैयार की गयी है, जिसे वाणिज्य मंत्रालय और रिजर्व बैंक आपसी तालमेल से लागू करेंगे.

उल्लेखनीय है कि आगामी कुछ ही दिनों में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार एक-दूसरे की मुद्राओं में किये जाने की संभावनाएं हैं. इसी तरह भारत अन्य देशों के साथ भी एक-दूसरे की मुद्राओं में भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित करने की डगर पर आगे बढ़ रहा है. इससे रुपये को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन के लिए अहम मुद्रा बनाने में मदद मिलेगी. एक ओर इससे जहां व्यापार घाटा कम होगा, वहीं विदेशी मुद्रा भंडार घटने की चिंताएं भी कम होंगी.

निश्चित रूप से रिजर्व बैंक के इस कदम से भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक वैश्विक मुद्रा के रूप में स्वीकार कराने की दिशा में मदद मिलेगी. जिस तरह चीन और रूस जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को तोड़ने की दिशा में सफल कदम बढ़ाये हैं, उसी तरह अब रिजर्व बैंक के निर्णय से भारत की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता के कारण रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिल सकती है.

नि:संदेह, रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव न तो निर्यातकों के पक्ष में है और न ही आयातकों के लिए फायदेमंद है. इसलिए व्यापार से फायदा लेने के लिए रुपया निश्चित रूप से स्थिर स्तर पर होना चाहिए. ऐसे में हम उम्मीद करें कि सरकार द्वारा उठाये जा रहे नये रणनीतिक कदमों से जहां प्रवासी भारतीयों से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेगी, वहीं उत्पाद निर्यात और सेवा निर्यात बढ़ने से भी विदेशी मुद्रा की आमद बढ़ेगी.

इन सबके कारण डॉलर की तुलना में रुपया एक बार फिर संतोषजनक स्थिति में पहुंचता हुआ दिख सकेगा. इससे देश की आर्थिक मुश्किलें कम होंगी तथा महंगाई से पैदा हुई पीड़ा भी कम होगी. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जल्दी ही रुपये का मूल्य स्थिर हो सकेगा और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोतरी होगी.

पीएफ़एमएस (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली)

सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) वित्त मंत्रालय, भारत सरकार की एक पहल है जो सरकारी वित्तीय प्रबंधन प्रणालियों में परिवर्तनकारी जवाबदेही और पारदर्शिता लाने और भारत में समग्र सुशासन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आधार आधारित और गैर-आधार आधारित दोनों बैंक खातों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी)/ गैर-डीबीटी भुगतान के ई-भुगतान के लिए एक वेब आधारित एप्लिकेशन प्रदान करती है।

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शुरू हुआ 'व्यापार स्वराज्य अभियान', वालमार्ट और ऐमजॉन से होगी अब आर पार की लड़ाई?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM MOdi) लोकल पर वोकल (Vocal for Local) एवं आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) पर बल देते हैं। इसे ज़मीनी स्तर तक सफल बनाने तथा ई कॉमर्स सहित देश के घरेलू व्यापार को चीन सहित अन्य विदेशी कंपनियों के आक्रमण से मुक्त कराने के लिए वह कृत संकल्प हैं। इसी के अनुरूप "व्यापार स्वराज्य" देश के सभी राज्यों के शहरों, गांवों एवं कस्बों में करीब 40 हजार से ज्यादा व्यापारिक संगठनों के माध्यम से चलाया जाएगा। इस व्यापार स्वराज्य अभियान के लिए कैट (Confederation of All India Traders) ने आज एक चार्टर भी जारी किया है।

खुदरा व्यापारियों ने शुरू किया व्यापार स्वराज्य अभियान (File Photo)

खुदरा व्यापारियों ने शुरू किया व्यापार स्वराज्य अभियान (File Photo)

हाइलाइट्स

  • गांधी जयंती के मौके पर कंफेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने आज व्यापार स्वराज्य शुरू करने की घोषणा की
  • संगठन का कहना है कि यह राष्ट्रीय अभियान चीन पर भारत के व्यापार की निर्भरता को समाप्त करने के लिए है
  • साथ ही देश के रिटेल व्यापार को बहुराष्ट्रीय ई कॉमर्स कंपनियों एवं अन्य विदेशी कंपनियों के कुटिल चंगुल से छुड़ाने का भी प्रयास

31 दिसंबर तक चलेगा अभियान
संगठन का कहना है कि यह अभियान आज से शुरू हो कर 31 दिसंबर 2020 तक जारी रहेगा। कैट (CAIT) के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीन खंडेलवाल का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकल पर वोकल एवं आत्मनिर्भर भारत पर बल देते हैं। इसे ज़मीनी स्तर तक सफल बनाने तथा ई कॉमर्स सहित देश के घरेलू व्यापार को चीन सहित अन्य विदेशी कंपनियों एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज के आक्रमण से मुक्त कराने के लिए वह कृत संकल्प हैं। इसी के अनुरूप "व्यापार स्वराज्य" देश के सभी राज्यों के शहरों, गांवों एवं कस्बों में करीब 40 हजार ज्यादा व्यापारिक संगठनों के माध्यम से चलाया जाएगा। इस व्यापार स्वराज्य अभियान के लिए कैट ने आज एक चार्टर भी जारी किया है।

7 करोड़ व्यापारियों की आर पार की लड़ाई
खंडेलवाल का कहना है कि अब यह वालमार्ट एवं ऐमजॉन सहित तमाम विदेशी कंपनियों के साथ भारत के 7 करोड़ व्यापारियों की आर पार की लड़ाई है। वह चाहते हैं कि विदेशी निवेश (FDI) पॉलिसी का सख्ती से पालन हो। इसका उल्लंघन करने पर कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई हो। किसी भी प्रकार की सरकार की ढुलमुल नीति को चुस्त-दुरुस्त किया जाना अब समय की आवश्यकता है। भारत के रिटेल व्यापार को विदेशी कंपनियां द्वारा उनकी मनमर्जी के कारण बर्बाद करने नहीं दिया जाएगा।

भारतीय व्यापार पर पहला हक एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज भारतीय कारोबारियों का
उनका कहना है कि भारत के व्यापार पर पहला हक़ भारतीय व्यापारियों का है। अब कैट के नेतृत्व में देश भर के व्यापारी अपने हक़ की लड़ाई लड़ेंगे। अब या तो क़ानून के अंतर्गत अनैतिम कारोबार करने वाली यही कंपनियां व्यापार करें और यदि सरकार इन कंपनियों को फिर भी अनैतिक व्यापार करने का मौका देती है तो देश के व्यापारी अपना व्यापार बंद करेंगे। व्यापारी नेताओं ने स्पष्ट कहा एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज कि व्यापारियों की सहनशीलता को उनकी कमजोरी नहीं माना जाए।

जारी किया चार्टर
खंडेलवाल ने व्यापार स्वराज्य अभियान (Vyapar Swarajya abhiyan) के लिए एक चार्टर जारी करते हुए बताया की चार्टर में ई कॉमर्स व्यापार (E Commerce Trade) के लिए तुरंत ई कॉमर्स पालिसी जारी हो। ई कॉमर्स व्यापार पर नजर रखने के लिए एक रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन हो। घरेलू व्यापार के लिए एक राष्ट्रीय व्यापार नीति की घोषणा हो। राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड का तुरंत गठन, जीएसटी कानून की दोबारा समीक्षा कर उसको सरल बनाया जाए। सभी प्रकार के लाइसेंस निरस्त कर एक लाइसेंस की व्यवस्था हो, व्यापारियों को आसान शर्तों पर बैंकों से क़र्ज़ मिले। देश के व्यापारिक बाज़ारों का कायाकल्प हो, व्यापार पर लगे सभी कानूनों की दोबारा समीक्षा हो और गैर जरूरी कानूनों को रद्द किया जाए। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की दोबारा समीक्षा हो और नॉन बैंकिंग फाइनेंस कम्पनी तथा माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के द्वारा कारोबारियों को क़र्ज़ दिया जाए। देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए एक प्रोत्साहन स्कीम बने। देश भर के व्यापारियों का कम्प्यूटरीकरण करने के लिए एक पालिसी बने।

विदेशी भाषाओं की बढ़ती मांग और रुझान

Shahram Warsi

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को और अधिक अंतरराष्ट्रीय महत्व के साथ, विदेशी भाषाओं की मांग और आवश्यकता मे वृद्धि हो गई है। अपनी मूल भाषा के अलावा किसी अन्य भाषा में प्रमुख बनने की इच्छा वैश्विक स्तर पर विस्तार कर रही है, जहां महत्वाकांक्षी छात्र विभिन्न विदेशी पाठ्यक्रमों का चयन कर रहे हैं। इस इच्छा के परिणामस्वरूप आज दुनिया में कुल 3 मिलियन विदेशी मुद्रा छात्र हैं, जो एक आंकड़ा 2020 तक 2.6 मिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है।

वास्तव में, स्नातक के लिए विदेशी भाषा में प्रवीणता को कम करके आंका नहीं जा सकता है, क्योंकि अर्थशास्त्री इंटेलिजेंस यूनिट के में कहा गया है, "घरेलू बाजार में नौकरियों के लिए भर्ती करते समय भी, सभी कंपनियों में से लगभग आधे उम्मीदवारों को धाराप्रवाह होना चाहिए। विदेशी भाषा के रूप में उनका मानना ​​है कि बहुभाषी क्षमता सफलता की कुंजी है।"

अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी-आधारित उत्पादों को अपनाने के कारण भाषा सीखने का बाजार मजबूत गति से बढ़ रहा है। भाषा सीखने से एक व्यक्ति को पूरी तरह से अलग दुनिया को समझने में योगदान देने वाले महत्वपूर्ण सोच कौशल उत्पन्न करने की अनुमति मिलती है। लोगों ने भाषा की सीमा को दुनिया की सीमा के रूप में मानना ​​शुरू कर दिया है।

लाभ

विभिन्न भाषाओं को सीखना देशी भाषाओं की ओर हमारी समझ में सुधार करता है और हमें उन लोगों के साथ संवाद करने की क्षमता देता है, जिन्हें हम अन्यथा जानने का मौका नहीं देते हैं। एक अलग भाषा सीखना हमेशा पैसा कमाने के लिए प्रेरित नहीं करता है।

एक द्विभाषी शिक्षा के लाभ अच्छी तरह से प्रलेखित हैं, जैसे कि एड्स, क्रॉस-सांस्कृतिक समझ और यहां तक ​​कि वैश्विक जागरूकता, रचनात्मक सोच और विभिन्न अन्य कौशल को सारणीबद्ध करके अकादमिक प्रगति में वृद्धि।

कई भाषाओं को बोलने की क्षमता अक्सर कमाई को बढ़ावा देती है। कभी-कभी भारत में किसी व्यक्ति के वेतन में 34% जोड़कर क्रमशः संयुक्त राज्य अमेरिका और थाईलैंड में 15 और 55% जोड़ती है।

यह कॉलेज स्वीकृति का मौका भी बढ़ाता है, करियर के अवसरों को भी बढ़ाता है। कंपनियों को अपने व्यावसायिक संचार, लाइव इवेंट्स , बैठकों और सम्मेलनों या उनके महत्वपूर्ण काम में दस्तावेज़ीकरण के लिए भाषा विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। ऐसे कंपनियों द्वारा अनुवादकों एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज और दुभाषियों का अत्यधिक भुगतान किया जाता

भाषाओं की मांग

यूनेस्को के मुताबिक, कई वक्ताओं द्वारा दुनिया की सबसे व्यापक बोली जाने वाली भाषाएं मंदारिन चीनी, अंग्रेजी, स्पेनिश, हिंदी, अरबी, बंगाली, रूसी, पुर्तगाली, जापानी, जर्मन और फ्रेंच हैं। कई गैर-पश्चिमी देशों के उदय के बावजूद, अंग्रेजी अभी-भी भाषा, विज्ञान, अनुसंधान और राजनीति के उद्देश्यों के लिए सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली भाषा है।

प्रौद्योगिकी और भाषा सीखना

प्रौद्योगिकी के प्रभाव का उल्लेख किए बिना शिक्षा और भाषा के रुझान अपूर्ण होंगे। ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में नामांकन बढ़ गया है, जिससे स्कूल अपने वेब-आधारित कार्यक्रमों को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। ऑनलाइन निर्देशों में सफलतापूर्वक पाठ्यक्रम बनाने के पाठ्यक्रमों के बावजूद, कुछ शिक्षकों को अभी भी उच्च गुणवत्ता वाले, विदेशी भाषा पाठ्यक्रमों को इंटरनेट पर पेश करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

आखिरकार, एक छात्र जिस अध्ययन और छात्र अध्ययन करना चुनता है, वह उनकी प्रेरणा पर निर्भर करेगा, चाहे वह भविष्य के रोजगार, आगे शैक्षिक अनुसंधान, या बस व्यक्तिगत हित के लिए हो। यह पता लगाने कि प्रत्येक व्यक्ति को क्या सफलता मिलती है, उसकी सफलता सुनिश्चित करने की कुंजी है।

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