स्टार राइटर मार्केटिंग है बिजनेस की आत्मा: जब तक कंपनी का हर कर्मचारी अपने प्रोडक्ट में यकीन न करे…मार्केटिंग मुश्किल

शिक्षा से डॉक्टर, रितेश मलिक दिल से आंत्रप्रेन्योर हैं। वह भारत के दूसरे सबसे बड़े को-वर्किंग प्लेटफॉर्म Innov8 के संस्थापक हैं। यह प्लेटफॉर्म स्टार्ट-अप्स, कॉर्पोरेट्स , फ्रीलांसर्स मार्केटिंग में क्या होता है और अन्य प्रोफेशनल्स को एक साथ लाता है। रितेश अब तक 60 से ज्यादा स्टार्ट-अप्स में निवेश कर चुके हैं। उन्होंने 2012 में अपनी MBBS की पढ़ाई के अंतिम वर्ष में ALIVE एप के रूप में पहला स्टार्ट-अप शुरू किया था जिसे बाद में बेनेट एंड मार्केटिंग में क्या होता है कोलमैन ग्रुप ने खरीद लिया। आज डॉ. रितेश मलिक स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देने के साथ ही मोहाली में प्लाक्षा यूनिवर्सिटी बना रहे हैं। आज वह बता रहे हैं कि प्रोडक्ट की सफलता में मार्केटिंग क्यों महत्वपूर्ण है…

कहा जाता है कि कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स के दम पर ही बड़ी बनती हैं। बिजनेस के मामले में यह शाश्वत सत्य है। इस मामले में प्रोडक्ट क्वालिटी के अलावा एक ही और चीज है जो किसी कंपनी के लिए इतनी ही जरूरी होती है, वो है- मार्केटिंग।

आपने PMF के बारे में सुना होगा, यानी- प्रोडक्ट-मार्केट फिट। यह ऐसा मिशन है जिसे फाउंडर्स और इनवेस्टर्स दोनों ही कंपनी के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। यह कॉन्सेप्ट इस बात को साबित करता है कि सिर्फ एक बढ़िया प्रोडक्ट बनाना काफी नहीं है, सफल होने के लिए जरूरी है कि उसकी मार्केटिंग भी प्रभावी तरीके से की जाए। कंपनियां अक्सर जो सबसे बड़ी गलती करती हैं, वो है- बिना अपने कस्टमर्स की सलाह लिए प्रोडक्ट बनाना।

प्रोडक्ट मार्केट फिट आज बिजनेस की दुनिया में वायरल हो रहा फ्रेज है। इसका अर्थ है- प्रोडक्ट को कस्टमर्स के हिसाब से बिल्कुल स्पेसिफिक तैयार करना ताकि बिक्री तेज हो।

प्रोडक्ट मार्केट फिट आज बिजनेस की दुनिया में वायरल हो रहा फ्रेज है। इसका अर्थ है- प्रोडक्ट को कस्टमर्स के हिसाब से बिल्कुल स्पेसिफिक तैयार करना ताकि बिक्री तेज हो।

मार्केटिंग एक ऐसा स्किल है जो कंपनी के फायदे के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। इसका उद्देश्य होता है एक ऐसा प्रोडक्ट बनाना जो रेप्लिकेबल हो यानी उसका बार-बार उत्पादन किया जा सके। और इससे भी महत्वपूर्ण कि यह प्रोडक्ट मार्केटेबल हो, यानी इसे बेचा जा सके। मार्केटेबिलिटी को समझना सबसे जरूरी है। एक मार्केटेबल प्रोडक्ट का बार-बार उत्पादन किया जा सकता है।

जैसा कि पहले भी कहा गया है, अपने बिजनेस की मार्केटिंग करते समय एक सबसे जरूरी कदम होता है अपने टार्गेट ऑडियंस को पहचानना। यानी यह समझना कि आप अपना प्रोडक्ट किसे बेचना चाहते हैं। यह एक मार्केटेबल प्रोडक्ट की एक और अनिवार्य शर्त है।

इसके लिए जरूरी है यह समझना कि आपका कस्टमर कौन है और वह क्या ढूंढ रहा है। यह जानकारी हो तो आप अपने टार्गेट ऑडियंस के हिसाब से अपनी मार्केटिंग कर सकते हैं। इससे आपकी मार्केटिंग की पहुंच ज्यादा होगी और यह लोगों से ज्यादा कनेक्ट करेगी। हर किसी को अपना प्रोडक्ट बेचने की कोशिश असफलता की गारंटी है।

याद रखिए, आप अपने कस्टमर को जितना बेहतर जानेंगे…आपकी मार्केटिंग की लागत उतनी ही कम होगी। और समय के साथ प्रॉफिट मार्जिन भी उतना ही ज्यादा होगा। मार्केटिंग का सीधा मतलब अपने कस्टमर की भावनाओं को समझना होता है। उनकी जरूरतों, इच्छाओं को समझना और उनकी समस्याओं को हल करना।

मार्केटिंग का दूसरा हिस्सा है- मैथेमैटिक्स। मार्केटिंग बिल्कुल मैथ की तरह होती है। आपको यह समझ में मार्केटिंग में क्या होता है आना चाहिए कि अपने कस्टमर्स को प्रोडक्ट के बारे में बताने के लिए आपको कितना खर्च करना होगा और इस खर्च पर आपको रिटर्न कितना मिलेगा। भारतीय स्टार्ट-अप अक्सर उस टार्गेट ऑडियंस पर फालतू खर्च करने की गलती करते हैं जो उनका प्रोडक्ट खरीदेगा ही नहीं। इसीलिए कस्टमर बढ़ाने की लागत बढ़ती ही जाती है।

पहले मार्केटिंग के तरीकों में बहुत ज्यादा विविधता नहीं थी। यह ज्यादातर वर्ड ऑफ माउथ यानी आपका प्रोडक्ट इस्तेमाल करने वाले लोगों के जरिये होने वाले प्रचार पर निर्भर था। मगर आज मार्केटिंग में सैकड़ों फैक्टर्स काम करते हैं। उदाहरण के लिए- डिजिटल मीडिया। सोशल मीडिया आज मार्केटिंग का बहुत बड़ा जरिया बन गया है।

वर्ड ऑफ माउथ को सोशल मीडिया ने एक नया आयाम दे दिया है।

मार्केटिंग की दुनिया में एक नया प्रयोग सामने आ रहा है- कम्युनिटी मार्केटिंग में क्या होता है मार्केटिंग। इसमें एक जैसी विचारधारा के लोग मिलकर प्रोडक्ट बनाने, बेचने और खरीदने के लिए एक साथ आते हैं। कम्युनिटी मार्केटिंग, मार्केटिंग का एक भावनात्मक जरिया है और जो ब्रांड्स इसे अपना पाते हैं, वो बेहतर स्थिति में होते हैं।

इस तरह की कम्युनिटी लेवल मार्केटिंग को बहुत बढ़िया से करने वाली एक कंपनी है- रेड बुल। उदाहरण के लिए, कोक या पेप्सी अपने रेवेन्यू का 9 से 10% मार्केटिंग पर खर्च करते हैं। मगर रेड बुल इस पर 25-26% तक खर्च करता है। उनका टार्गेट ऑडियंस वो लोग होते हैं जो एडवेंचर पसंद करते हैं और वो उनके लिए बहुत प्रभावी मार्केटिंग करते हैं। इस तरह की मार्केटिंग का एक और अच्छा उदाहरण नाइकी है।

ये ब्रांड हमें सिखाते हैं कि ब्रांड मैसेजिंग का सतत होना बहुत जरूरी है। प्रोडक्ट के लुक और क्वालिटी में बार-बार बदलाव से उसकी मार्केटेबिलिटी खराब होती है। आप मैक्डॉनाल्ड्स का लोगो जितनी ज्यादा बार देखेंगे उतना ही ज्यादा उसके आपके दिमाग में बस जाने के चांस होंगे।

मार्केटिंग यूजर एक्सपीरियंस पर भी निर्भर करती है। आपके प्रोडक्ट की कुछ ऐसी खासियत होनी चाहिए जिसके बारे में आपका टार्गेट ग्रुप दूसरों को बता सके कि क्यों वह आपका प्रोडक्ट इस्तेमाल करता है। जरूरी है कि आप कैसे लगातार प्रोडक्ट में वैल्यू ऐड करते हैं, कैसे यूजर्स से लगातार संपर्क में रहते हैं और उन्हें बताते हैं कि आप उनके साथ हैं।

यूजर एक्सपीरियंस को बिजनेस की भाषा में UX कहा जाता है। कई कंपनियां यूएक्स कोशिएंट भी मापती हैं।

मेरे हिसाब से मार्केटिंग का आखिरी पहलू है कि ये पूरे ऑर्गनाइजेशन का इनिशिएटिव होना चाहिए। ऑर्गनाइजेशन में उनके रोल्स चाहे कुछ भी हों, हर मेंबर को यह समझना होगा कि वो प्रोडक्ट के मार्केटियर भी हैं। आदर्श स्थिति वो होगी जब आपके कस्टमर भी आपके प्रोडक्ट की मार्केटिंग करें। मेरे विचार से जब तक आपकी पूरी टीम और आपके कस्टमर्स आपके प्रोडक्ट में यकीन नहीं रखते, तब तक आप उसे बेच नहीं सकते।

रेटिंग: 4.68
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 121